Sunday, April 11, 2021

मेरी कला का प्रशंसक आज चमकता हुआ सूरज ढल गया।धन्या लोहार (पांचाल) समाज.. धन भारतवर्ष... त्रिलोक माण्डण, राजस्थान.


        

आज से नौ दशक पहले, अहमदाबाद के पास अरनेज गाँव में बुट भवानी की माँ की गोद में 2 अप्रैल, 1930 को एक बच्चे का जन्म हुआ था।  यह केवल पीथवा लुहार समाज के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक शुभ समय था ... 

ऐसा कहा जाता है कि संत के आगमन से प्रकृति स्वयं भावुक हो जाती है और नृत्य करती है।  देवता आकाश से फूलों की वर्षा करते हैं।  संपूर्ण मानव जाति धन्य हो जाती है।

जब की नियति ने 17 साल की उम्र तक आते-आते शांतीलाल पांचाल का साथ दिया और वह वन्थल के पुरुषोत्तम बापू के (वीरमगाम के पास) वहाँ पहुँचते हैं, जिससे युवक के दिल में उथल-पुथल मच जाती है।  सत्संग चलता है और युवक से सुलह हो जाती है। जब संत और संतसंगी  एक रंग महसूस कर रहे थे तब पुरुषोत्तम बापू के साथ लगभग दस साल तक का समय भारतीबापू की मानसिकता के उत्सान के लिए पर्याप्त था।

यह स्वाभाविक है कि वह देश की लगभग सभी महान हस्तियों से जुड़े हुए हैं ... और इसीलिए आज प्रधानमंत्री से लेकर पूरा देश उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है।

हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी लिखते हैं कि जब मैं प्रचारक था, मैं अपने स्कूटर को पेट्रोल पंप पर खड़ा करता था और पेट्रोल भरता था और फिर भारती बापू के पास जाता था।

ऐसा दिव्य व्यक्तित्व आज हमारे बीच से चला गया ... जो अंतिम क्षण तक स्वस्थ था।  इस धरती पर नौ दशक बिताने के बाद भी वे स्वास्थ्य को बचाने और हम सभी को इस तरह जीने का संदेश देने में सक्षम थे।  लत को फैशन मत बनाओ।  क्या ऐसा व्यापक व्यक्तित्व रहा होगा?  इसका उत्तर हाँ है। इसका कारण यह है कि भारतीबापू के अंदर जो मज़ा और उत्तेजना थी, वह बाहरी प्रतिष्ठा पर आधारित नहीं थी।

यदि हम शांतिलाल लोहार से लेकर भारतीबापू तक की जीवन यात्रा को देखें, तो अहमदाबाद जिले के धोलका तालुका के अरनेज गांव में जन्मे हैं।  कहा जाता है कि संत पैदा नहीं होते, वे प्रगट होते हैं।  पीथवा लुहार शाख में जन्मे, इस महात्मा की शुरुआत 4 जनवरी, 1965 को हुई थी, और केवल खोरडू ही नहीं, बल्कि पूरा लोहार (पंचाल) समुदाय धन्य हो गया था।  अरनेज गाँव पहले से ही बुट भवानी की माँ के लिए प्रसिद्ध गाँव था ... उस भूमि पर एक संत की उपस्थिति एक और शानदार घटना थी।

दीक्षा लेना और आराम से रहना उसका उद्देश्य कभी नहीं था। आखिरकार, उसके अंदर एक लोहार का खून था। हालांकि, संत किसी भी समाज के नहीं होते हैं। वे पूरे राष्ट्र के हैं। वे पूरी मानव जाति के हैं।  हालांकि, पहलेसे ही लोहार समाजकी कई प्रभावसाली संस्थाऐ वो फिर भले ही कोरोना शुरू होने से पहले उन्हें प्राइड ऑफ पांचाल टीम की ओर से विशेष सम्मान दिया गया था, सहज रूप से, उन्होंने बिना किसी दिखावा के स्वीकार कर लिया ... मानव एक्तित्व मे छोटा हो या बडा सभी के साथ रहना उनके व्यक्तित्व के साथ बुना गया था। कड़ी मेहनत के बिना उपकरण का मतलब भारतीबापू, जो कुछ बर्षमे दे गये हैं वो सच्चाई किसीसे छुपी नई हैं,

उन्होने 21 मई, 1971 को अहमदाबाद के एक महानगर सरखेज में "भारती आश्रम" की स्थापना की। कई मानवीय गतिविधियों की शुरुआत की।  उस सेवा की सुगंध हर जगह फैल रही थी ... जब वह 1993 में जूनागढ़ में महामंडलेश्वर बने, तो उनकी सफलता की कहानी गुजरात के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित थी।

भारतीबापू ने अहमदाबाद में चंदलोदिया श्री विश्वकर्मा मंदिर की नींव रखी। दादा की प्राण प्रतिष्ठा भी उनके हाथों में थी और इस तरह से वाढियारी लोहार (पांचाल) को लगातार आशीर्वाद मिला।  यदि चंदेलिया में वाधियारी पांचाल समाज आज समृद्धि के शिखर पर है, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस संत का आशीर्वाद इसके साथ जुड गया है।

अब वह मुस्कुराता हुआ चेहरा..जो शुद्ध मुस्कुराहट हमारे बीच नहीं है ... जो रेगिस्तान में मीठे खरपतवार का काम करता था।

आज वह महान, पवित्र आत्मा हमारे बीच से चला गया है .. उसका शरीर हमारे बीच से छुट्टी दे सकता है पर उसके विचार नहीं ... उसकी सेवा और करुणा की सुगंध हमें सदियों तक प्रेरित करती रहेगी।

आलेखन :  पत्रकार मयुर पित्रोडा
लोहार युवा समन्वय - सिंहस्थ सेना राष्ट्रिय अध्यक्षश्री
9512171071


लेखक : विश्वरीकोर्ड होल्डर ,विश्वकर्मा रत्न ,
आर्टिस्ट त्रिलोक माण्डण काष्ठमूर्तिकार राजस्थान
9950751329


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